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Chandrayaan-3: कितना सही है चंद्रमा के लिए अभियान पर किया गया निवेश
JPNews webdesk new dalhi भारत की स्पेस एजेंसी इसरो के बहुप्रतीक्षित और महत्वाकांक्षी अभियान चंद्रयान-3 की लैंडिंग पर दुनिया की निगाहे हैं. अब साथ ही भविष्य में यह अभियान भारत और दुनिया के लिए कितना गेमचेंजर साबित होगा इसके भी खासे चर्चे हो रहे हैं. इस अभियान का महत्व तब और बढ़ गया था. जब रूस का लूना 25 समय से पहले ही नाकाम हो गया था.
लेकिन यहां विचार करने वाली बात यही है कि क्या भारत जैसे देश को 613 करोड़ पर खर्च करना चाहिए क्या वास्तव में यह अभियान आने वाले समय में गेमचेंजर साबित होगा. क्या ये 613 करोड़ भारत के लिए एक निवेश की तरह साबित होंगे या केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग के लिए किया गया खर्चा?
क्यों ना जलवायु पर खर्चा किया जाए
सामान्य तौर पर कई लोग दलील देते है कि अंतरिक्ष उद्योग पर किया जाने वाला खर्चा उपयोगी नहीं होता है. उनकी दलील है कि उससे बेहतर है कि वह निवेश पर्यावरण और जलवायु संरक्षण के लिए किया जाना ज्यादा बेहतर होगा. लेकिन ऐसे लोग भूल जाते हैं कि अंतरिक्ष तकनीकी विकास ने दुनिया को पर्यावरण के लिहाज से कई समाधान दिए हैं. साथ ही जीपीएस जैसी कई आधुनिक तकनीकी और संचार सुविधाएं भी दी हैं
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अंतरिक्ष क्षेत्र में आगे बढ़ रही है दुनिया
ऐसे में चंद्रमा के लिए अभियानों को केवल वैज्ञानिक अन्वेषण या प्रयोग के लिहाज से तौलना सही नहीं होगा. देखने में आ रहा है कि दुनिया के दूसरे देश जिस तरह से अंतरिक्ष की तकनीकों में निवेश कर रहे हैं. उसको लेकर यह बहुत जरूरी था कि भारत भी अतंरिक्ष तकनीक में खुद को आगे लाने का काम करे और चंद्रयान-3 इस मायने में एक बड़ी छलांग साबित होगा.
सॉफ्टलैंडिंग और इसरो का भरोसा
पृथ्वी के बाहर किसी दूसरे पिंड यानि चंद्रमा या मंगल ग्रह पर सॉफ्ट लैंडिंग में अभी तक अमेरिका, रूस और चीन ही सफल हो सके हैं. ऐसे में चंद्रयान का भारत को इन देशों की श्रेणी में लाना एक बड़ा कदम समझा जा रहा है. गौर करने वाली बात यह है कि इसरो चंद्रयान-3 की लैंडिंग को लेकर बहुत आश्वस्त रहा और उसने किसी भी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी.
अंतरिक्ष के क्षेत्र में चंद्रयान -3 भारत के लिए एक लंबी छलांग साबित होगा.
भारत के अंतरिक्ष उद्योग की वृद्धि
भारत के अंतरिक्ष उद्योग में धीरे धीरे निजी स्पेस तकनीक तंत्र पनपन रहा है जिससे नई पीढ़ी के नए उद्यमियों के लिए नए-नए अवसर मिल रहे हैं. भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के 2025 तक इसके 13 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है. आज यह वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग की तुलना में दो गुनी रफ्तार से बढ़ रही है. और 2040 तक यह 100 अरब डॉलर पहुंच जाएगी.
बढ़ते स्टार्टअप के योगदान
आज भारत में 150 से भी ज्यादा अंतरिक्ष तकनीक से संबंधित स्टार्टअप हैं जिसमे स्कायरूट, सैटश्योर, ध्रुवा स्पेस आदि कुछ प्रमुख नाम हैं जो, ओटीटी, ब्रॉडबैंड, 5जी, सौर फार्म का संचालन सहित कई उपयोगिताओं पर काम कर रहे हैं. कई पूंजी लगाने वाले निवेशक इस क्षेत्र के लिए खासे आकर्षित हो रहे हैं. भारतीय अंतरिक्ष उद्योग में निजी भागीदारी को भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 से जैसी सराकारी नीतियों का प्रोत्साहन भी सहायक है.
इसरो की भारत में निजी क्षेत्र के साथ बढ़ती साझेदारी आने वाले समय में अंतरिक्ष उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी.
नौकरी और निवेश
जाहिर है कि चंद्रयान-3 जिसकी लैंडिंग के बारे में इसरो को कोई चिंता नहीं है. भारत के लिए बड़ा गेमचेंजर साबित हो सकता है. इसके बाद देश के अंतरिक्ष अन्वेषण की तस्वीर पूरी तरह से बदल सकती है और उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देने लगेगा. इसके साथ ही निजी उद्योग में निवेश बढ़ेगा और साथ ही कई नौकरियां भी पैदा होंगी.
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आंकड़े बताते हैं कि भारत के इसरो ने चंद्रयान-3 पर केवल 613 करोड़ खर्च किया है. दुनिया के सभी देश इस पर टकटकी लगाए इसलिए भी देख रहे हैं कि अभियान की अच्छी सफलता संसार को चंद्रमा की लैंडिंग का एक सस्ता विकल्प दे सकता है. जबकि इसी तरह के अभियान के लिए अमेरिका और रूस के अभियान बहुत ही ज्यादा महंगे साबित होते हैं. रूस के लूना 25 यान की लागत 1600 करोड़ थी. यह भी विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षण की बड़ी वजह बनेगा.